साहित्य अकादेमी। नई दिल्ली । 21-22 अगस्त, 2017
त्रिलोचन जन्मशती के मौके पर साहित्य अकादेमी द्वारा 21 व 22 अगस्त को आयोजित जन्मशतवार्षिकी संगोष्ठी में हिंदी के जाने माने कवि त्रिलोचन को याद किया गया। उदघाटन किया केदारनाथ सिंह ने। उदघाटन सत्र के विशिष्ट अतिथि थे डा रामदरश मिश्र। विशिष्ट वक्ता थे हिंदी परामर्श मंडल के संयोजक एवं जाने माने विद्वान सूर्य प्रसाद दीक्षित। स्वागत किया अकादेमी के सचिव डा के एस राव ने। संचालन कुमार अनुपम ने। केदारनाथ सिंह ने बहुत भावभीने ढंग से त्रिलोचन को याद किया। उन्होंने कहा त्रिलोचन दो हैं एक तो बनारस के दूसरे उसके बाद के त्रिलोचन । उनके जीवट, काव्यबोध, उनके सामान्य रहन सहन को केदार जी ने अपने जरा से व्याख्यान में जैसे रेखाचित्र की तरह उतार दिया। रामदरश मिश्र ने भी शुरुआती दिनों के त्रिलोचन को सलीके से याद किया।
21 अगस्त को पहला सत्र ‘त्रिलोचन का काव्य एवं उनका सौंदर्यबोध’, कवि अष्टभुजा शुक्ल की अध्यक्षता में संपन्न हुआ जिसमें आलोचक अरविंद त्रिपाठी, गोविंद प्रसाद एवं तरुण कुमार ने अपने विचार रखे। 22 अगस्त को त्रिलोचन के गद्य पर चर्चा के पहले सत्र की अध्यक्षता की नंद किशोर पांडेय निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान ने। इस सत्र में प्रोफेसर कौशलनाथ उपाध्याय प्रो आनंद प्रकाश त्रिपाठी, एवं प्रो करुणाशंकर उपाध्याय ने अपने विचार रखे।
‘स्मृति में त्रिलोचन’ विषयक तीसरे सत्र में सुल्तानपुर निवासी कवि संपादक कमलनयन पांडेय की अध्यक्षता में राम कुमार कृषक एवं श्याम सुशील ने अपने भावभीने संस्मरण सुनाए। कमल नयन पांडेय ने चिरानी पटटी के त्रिलोचन की बहुत सारी दुर्लभ यादें साझा कीं। श्याम सुशील ने त्रिलोचन के संग साथ जिए क्षणों को यादगार पलों में बदल दिया। रामकुमार कृषक ने लोहामंडी के त्रिलोचन को जैसे अपने शब्दचित्र में बांध दिया।
अंतिम सत्र त्रिलोचन के साहित्यिक अवदान पर केंद्रित था। त्रिलोचन के बरसों के साथी रहे जाने माने आलोचक गद्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी की अध्यक्षता में डा अनामिका ने त्रिलोचन के उस पक्ष को सामने रखा जो अक्सर उनकी कविता के संदर्भ में बात करते हुए अलक्षित रह जाते हैं। इसी सत्र में इन पंक्तियों के लेखक(ओम निश्चल) ने भी साहित्य में त्रिलोचन के अवदान को उनकी रचनाओं के आलोक में व्याख्यायित किया। विश्वनाथ त्रिपाठी ने बताया के वे उनके गुरु थे। निराला की कविताओं का पाठ उनसे समझा है और भाषा व अर्थ के मीमांसक के रूप में उन्हें पाया है। इस अवसर पर उन पर अकादेमी ने एक फिल्म भी दिखाई जिसमें त्रिलोचन को काव्यपाठ करते विमर्श करते हुए तथा जीवन के बीचोबीच उनकी उपस्थितियों को दर्ज किया गया है। यह फिल्म त्रिलोचन को जानने की प्राथमिक कुंजी है।
उदघाटन से लेकर सभी सत्र बहुत बोलते हुए और सधे हुए सत्र थे। अभी भी त्रिलोचन को जानने वालों की तादाद इतनी ज्यादा है, उन्हें प्रेम करने वालो की संख्या इतनी है कि हर एक जो उनकी सोहबत में रहा है कुछ न कुछ अमूल्य उसके पास है। गद्य में उनके सामर्थ्य को सबल ढंग से स्थापित किया गया। डा आनंदप्रकाश त्रिपाठी ने सागर में उनसे हुई बातचीत के हवाले से बताया कि उनकी रची और भी तमाम कृतियां एक उपन्यास व तमाम पत्र अनुपलब्ध हैं जिनकी खोज कर उन्हें प्रकाशित कराना चाहिए। बीच में त्रिलोचन जी की पुत्रवधु ऊषा सिंह ने भी अपनी बात रखी। सभी सत्रों में अकादेमी का सभागार लगभग भरा था। सत्रों में तैयारी के साथ आए वक्ताओं ने त्रिलोचन की रचनाओं के साथ उनके व्यक्तित्व की खूबियों को भी जिन्दादिली के साथ उजागर किया। कार्यक्रम के संयोजक संचालक कवि अनुपम ने विषय परिचय, व्यक्त विचारों एवं वक्ताओं के परिचय के साथ कथ्य को सूत्र को खूबी के साथ जोड़े रखा।
इस अवसर पर डा रामदरश मिश्र की धर्मपत्नी श्रीमती सरस्वती मिश्र सहित दिल्ली के अनेक साहित्य्कार राधेश्याम बंधु, ब्रजेन्द्र त्रिपाठी, दिविक रमेश, डा रेखा व्यास, आशीष मिश्र, सुनील कुमार मिश्र, अमरेंद्र मणि त्रिपाठी, राकेश पांडेय, इंद्र कुमार शर्मा, जे एल रेड्डी, विवेकानंद, मजीद अहमद, शोभा मिश्र, कविता, पराग अग्रवाल, विमल कुमार,डॉ रणजीत साहा, राजेन्द उपाध्याय, डा हरिसुमन विष्ट, डा भारतेन्दुु मिश्र, सुश्री अनुपम सिंह, अच्यु्तानंद मिश्र आदि उपस्थित थे।
- वरिष्ठ लेखक ओम निश्चल की रिपोर्ट