_______________________________________________सुशोभित सक्तावत की कलम से, इंदौर रहते हैं। पत्रकार हैं, अभिनेत्री दीप्ति नवल की बॉयोग्राफी लिख रहे हैं। लेखक की भाषा ही उसकी "राष्ट्रीयता" होती है। तो "भाषांतर" को क्या उसका "विस्थापन" समझा जाए? शायद नहीं, क्योंकि लेखक की राष्ट्रीयता "उसकी भाषा" होती है, कोई "एक" भाषा नहीं, और "मातृभाषा" तो क़तई नहीं। चंद उदाहरणों से इसको समझें। योसेफ़ कॉनरॉड को अंग्रेज़ी का पहला आधुनिक उपन्यासकार माना जाता है। उनके सुगठित वाक्य विन्यास "लैक्सिकन प्रिसिशन" की मिसाल कहलाते हैं। बाद के सालों में अंग्रेज़ी के जो भी उल्लेखनीय "प्रोज़ स्टाइलिस्ट" हुए, वे सभी कॉनरॉड को अपना उस्ताद मानते हैं, चाहे वे फ़ॉकनर हों, नायपॉल हों, रूश्दी हों या ग्राहम ग्रीन...
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